हमारे आस पास घटने वाली घटनाओं लोगों और तथ्यों को perceive करतेहुवे, उसकेसंदर्भ (Context) को अंतर्मन में परिभाषित करने की प्रक्रिया को परिप्रेक्ष्य कहते है।
साधारण भाषा में कहे तो हम जिस प्रकार अपने आसपास घटने वाली घटनाओं, लोगो और तथ्यों को देख रहे हैं और उन तथ्यों को देखते हुए उन्हे अपने मन के भीतर समाहित कर रहे हैं। जिसका हमारे जीवन पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है।
इसे समझाने के लिए मैं यहां आपके सामने बारी बारी से दो उदाहरण देना चाहता हूं।
पहला उदाहरण:
पहले उदाहरण को हम एक छोटी सी घटना के द्वारा समझने का प्रयास करते हैं। एक गांव में एक दुकान थी,जहां की दही और जलेबी काफी ज्यादा मशहूर (famous) थी। एक बार एक कवि उस दही जलेबी की दुकान पर सुबह-सुबह दही जलेबी खाने गए, तभी उन्होंने अचानक देखा कि पास में पड़े झूठे बर्तनों से ठन ठन की आवाज आ रही थी, और एक कौवा उस झूठे बर्तनों से दही- जलेबी खाने का प्रयास कर रहा था।
बर्तन की आवाज से वहां मौजूद लोग परेशानी का अनुभव कर रहे थे। तभी दुकानदार ने ग्राहकों के भाव को समझते हुए कौवे को भगाने के उद्देश्य से पास पड़े कोयले के टुकड़े को उठाया, और कौवे को दे मारा, संयोग से वह कोयलें का टुकड़ा कौवे को लग गया और दुर्भाग्यवश वह कौवा मर गया।
तभी वहां मौजूद उस कवि का हृदय व्याकुल हो उठा और उसने उसी कोयले के टुकड़े को उठाकर, उस कौवे को श्रद्धांजलि देते हुए पास की दीवार पर एक वाक्य लिखा –
“कागदहीपरजानगँवायो”
तभी थोड़ी देर बाद उस गांव के एक मुनि की चोरी पकड़ी गई और जिस सेठ के वहां वह काम करता था, उस सेठ ने उसे नौकरी से निकाल दिया। निराश- हताश मुनि अपने घर की ओर जा रहा था, और उसकी नजर भी दही और जलेबी की दुकान पर पड़ी।
इच्छावश मानस स्थिति को सही करने के लिए वह दही और जलेबी खाने लगा। दही – जलेबी का स्वाद लेते हुए उसकी नजर दीवार पर लिखे, वाक्य पर पड़ी और उसने उस कवि के लिखे हुए वाक्य को देखते हुवे कहा कि अरे! वाहयहलाइनतोकिसीनेमेरेलिएलिखीहै।
क्योंकि उसकी चोरी पकड़ी गई थी, जिस कारण से उसकी नौकरी चली गई थी तो वह मुनि उस वाक्य में अपनी घटना (पूर्वाग्रह के कारण) के संदर्भ को देख रहा था।
क्योंकि वह वाक्य को कुछ ऐसे पढ़ रहा था- “कागद, हीपरजानगँवायो” (कवि के भाषा में कागद यानी कागज)
यानी यहां वह अपने perspective से उसे यह पढ़ रहा था कि“कागद, हीपरजानगँवायो” यानि कागज की हेरा फेरी में उसकी नौकरी चली गई, किंतु दीवार पर कवि ने “कागदहीपरजानगँवायो” लिखा था।
तभी थोड़ी देर बाद वहां से एक पति जिसकी अभी-अभी अपनी पत्नी से लड़ाई हुई थी, वह उसी रास्ते से गुजर रहा था और उसने भी दही-जलेबी के दुकान को देखा और देखकर अपने मानस स्थिति को बदलने के लिए दही-जलेबी खाने का विचार किया।
और वह पति दही जलेबी खा रहा था, तभी उसकी भी नजर उस दीवार पर लिखे वाक्य (“कागदहीपरजानगँवायो”) पर पड़ी और उस line को देखते ही उसने कहा अरे! वाहइसनेमेरेमानसस्थितिकीकितनीअच्छीव्याख्याकीहै
क्योंकि वह पत्नी से लड़ाई कर आया हुआ पति उस line को कुछ इस प्रकार पढ़ रहा था कि “का, गदहीपरजानगँवायो”, इसी को परिप्रेक्ष्य कहते है।
एक इंसान अपने परिस्थिति के अनुकूल घटनाओं को लोगों को और तथ्यों को perceive करता है और किसी भी तटस्थ (neutral) घटना, लोग और तथ्य को अपनी मानस स्थिति और परिस्थिति के अनुकूल meaning देता है।
क्योंकि तथ्यों को हम अपने मुताबिक देखना और अपने संदर्भों से समझना चाहते हैं इसीलिए कवि ने कहा कि ‘जाकीरहीभावनाजैसी, प्रभुमूरतदेखीतिनतैसी’।
अब इस उदाहरण से आप समझ चुके होंगे, कि हम जब भी किसी घटना, लोग या तथ्य को देखते हैं तो उन घटनाओं, लोगों या तथ्यों को जैसे का तैसा perceive नहीं करते, उसमे से कुछ चीजों को हमारा mind delete कर देता है, कुछ को destroyed (संदर्भ को बदल देता है) कर देता है, और कुछ को generalized कर देता है।
उदाहरण 2:
आप इस वक्त इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं, इससे पहले आप बाजार जरूर गए होंगे या जाते होंगे। जब आप बाजार में होते हैं, वहां पर भीड़भाड़ होती है। कई सारी गाड़ियां होती है। कई सारी घटनाएं घट रही होती है।
आप बाजार में कई सारे लोगो को घटनाओं को, तथ्यों को आप अपनी आंखों के सामने घटते हुए देखते भी हैं लेकिन अगर आप घर वापस आकर बाजार में हुई घटनाओं को, लोगों को याद करने का प्रयास करें तो 1-2 घटनाओं या लोगों को छोड़कर बाकी सभी घटनाओं या लोगों को आपका mind याद नहीं कर सकता है। इसी को destroy (मिटा देना) कहते है।
कई बार कुछ घटनाओं को हम अपने परिप्रेक्ष्य से बदलाव करते है।
उदाहरण के द्वारा इसे समझते हैं – कई बार आपने बरसात के मौसम में लोगों को कहते सुना होगा कि बारिश बहुत हो रही है, मौसम बहुत खराब है।
बरसात के मौसम में बारिश बहुत हो रही है- यह तथ्य है, लेकिन इसके बाद का कहा हुआ वाक्य की मौसम बहुत खराब है, यह किसी एक व्यक्ति का opinion हो सकता है।
क्योंकि बारिश होने से फसल होती है, लोग हरे-भरे पौधे उगाते हैं, जिससे इंसानों को अनाज और पशुओं को चारा उपलब्ध होता है। इस प्रकार बरसात के मौसम में बारिश का होना जीवन दायानी है, ना कि खराब मौसम का द्विवेतक (representation).
थोड़े देर के लिए मान लीजिए आप किसी शहर में गए और उस शहर में जाते ही आपकी जेब कट गई, दूसरी दफा फिर आप उसी शहर में गए और संयोग वश दोबारा से आपकी जेब कट गई। तीसरी दफा जब आप शहर में जाएंगे या किसी को जाते हुए पाएंगे तो आपके मन से अवश्य ही एक बात उभर कर आएगी कि उस शहर में जेबे कटती है और ऐसे में हो सकता है कि आप कहें कि फलाना शहर में जेब कतरे रहते हैं या फलाना शहर के लोग जेब कतरे हैं।
लेकिन संभव है कि उस पूरे शहर में कोई एक व्यक्ति ही जेब कतरा हो और संयोग वश दोनों बार जब भी आप शहर आए होगे, उसी एक व्यक्ति ने आपकी जेब काटी हो। लेकिन आपके साथ एक ही प्रकार की घटना दो बार घट चुकी है तो आपने पूरे शहर को जेब कतरो के शहर की संज्ञा दे दी। इसे ही generalization कहते है।
संदर्भ 1:
कई बार आपने सुना होगा सभी नेता घोटाले बाज होते हैं, सभी पुलिस वाले घूसखोरी होते हैं, सभी मर्द धोखा देते हैं, सभी औरतें खर्चीली होती है; इस तरह के वाक्य को सुनते ही किसी भी घटना, लोग और तथ्य को generalize होता हुआ पाते हैं और आपके मन के भीतर किसी एक घटना, लोग या तथ्य के प्रति नकारात्मक परिदृश्य उत्पन्न हो जाती है।
ऐसे में वेसी घटनाओं लोगों और तथ्यों को perceive करते हुवे, आपका दृष्टिकोण यानी point of view नकारात्मक रहता है। जिसका नकारात्मक असर आपके जीवन, आपके निर्णय और आपके कार्यशैली पर पड़ता है और आप नकारात्मक उलझनो में फंसे रहते हैं।
संदर्भ 2:
कई दफा पहले के अनुभव के आधार पर perception (धारणा) बना लेते है, जिससे भी हमारा परिप्रेक्ष्य निर्धारित होता है।
उदाहरण के द्वारा इसे समझते हैं –
लेखक लिख रहा है कि मैं जब पहली दफा स्कूल गया,अपने माता-पिता का दुलारा होने की वजह से मैंने जिद की कि मेरी मां भी मेरे साथ स्कूल में बैठेगी। जिसकी वजह से स्कूल के पहले दिन ही वहां के हेडमास्टर के द्वारा मुझे पिटाई लगी।
उस पिटाई के अनुभव से मेरे अंदर धारणा बैठ गई की स्कूल खतरनाक जगह है। शिक्षक पिटाई करने वाले होते हैं और वह जरूरत पड़ने पर जान भी ले सकते हैं और इस अनुभव ने मेरे मन में इतना भय व्याप्त कर दिया कि मैं जीवन भर पूरे मन से शिक्षा और शिक्षकों से जुड़ नहीं पाया और फल स्वरुप मेरे marks हमेशा औसत ही रहे और मैं पढ़ाई में हमेशा पिछड़ा रहा।
हालांकि बाद में इस संदर्भ को ठीक करने के पश्चात मैंने अपने mind को इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि मैंने 2,000 से ज्यादा किताबें ली, और आर्टिकल्स न केवल मैंने पढ़ी बल्कि उन्हें अच्छे से मैंने याद किया और अपने आप को एक NLP (Neuro-linguistic Programming) coach के रूप में खुद को स्थापित किया, और अब तक करीबन 25,000 से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग के जरिए सहायता प्रदान कर चुका हूं। जिसमें बच्चे, बूढ़े, पुरुष, महिलाएं,businessman, corporate, school & colleges इत्यादि लोग सम्मिलित हैं।
दोस्तों अगर आप भी अपने परिप्रेक्ष्य को बदलना चाहते हैं, जीवन में किसी भी दुख, चिंता, आए हुवे परेशानियां को हराना चाहते हैं, तो आपको अपने mind को reprogram करना आना चाइए ताकि आपके perception, perspective को बदले और तथ्यों को सही स्वरूप में अपने outcomes के मुताबिक आप देख सके और उसका सही उपयोग और प्रयोग करते हुवे अपने जीवन में बड़ी ऊंचाइयों को हासिल करें।
अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो नीचे एक link है, जिसके जरिए आप मेरे आधे घंटे की बेहतरीन मास्टर क्लास देख सकते हैं। जिसे देखकर आपको अपने जीवन में सफलता अवश्य मिलेगी।
आपकोबहुत–बहुतशुभकामनाएं
(धन्यवाद)